बस यूंही

रात को सोना और सुभा को जगना। बस इतनी सी तो है ज़िन्दगी, पर ना जाने इतनी सी ज़िन्दगी भी हमें कभी कभी इतनी कठिन क्यों लगती है। कहां से इतने सारे विचार चले आते है हमारे जहन में जो हमें इतना बेचैन कर जाते हैं। कहने को तो सीधी साधी है ज़िंदगी पर हम खुद के ख़यालो में खो कर इसको इतना कठिन बना लेते है और आप ही परेशान होते रहते है।

क्यों हम दूसरों के खयालों के बारे में इतना सोचते हैं?

क्यों हम दूसरों के बारे में इतना सोचते हैं?

क्यों ना हम इतना सब अपने बारे में सोचे और हमारे दिमाग को थोड़ा शांत रखे या फिर क्यों ना सब भूल भाल कर कहीं कुछ दिनों के लिए घूम ही आए।

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